HAPUR NEWS : गिरिराज महाराज की शिला को कोई भी ब्रज से बाहर नहीं ले जा सकता : श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री
सदैव प्रसन्न रहना परमात्मा की सर्वोच्च भक्ति : ठाकुरजी महाराज
गिरिराज महाराज की शिला को कोई भी ब्रज से बाहर नहीं ले जा सकता : श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री
जो भगवान को याद करता है, भगवान उससे ज्यादा उसे याद करते हैं : श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री
हापुड़ न्यूज ब्यूरो भानुप्रकाश शर्मा
मथुरा । केएम विश्वविद्यालय में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन भागवत भास्कर श्रीकृष्ण चन्द्र शास्त्री जी ने व्यासपीठ से कहा कि भगवान धर्म की स्थापना के लिए जन्म लेते हैं, उनके सामने जो आता है, वहीं पार हो जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण जब वृंदावन छोड़कर मथुरा गए, तो उन्होंने कंस के अत्याचार को देखकर उसका मर्दन किया। उज्जैन में विद्या अध्ययन कर वापस लौटकर आए तो वृंदावन की याद आने लगी। शास्त्री जी ने कहा जो भगवान को याद करता है, उससे ज्यादा भगवान उसकी याद करते है। इसलिए सदैव परमात्मा का स्मरण हमे करते रहना चाहिए।
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ब्रजवासियों का कुल देवता गिरिराज महाराज हैं, गिरिराजजी की शिला (छोटे-बड़े पत्थर) को आप बाहर नहीं ले जा सकते, लुका छुपी से अगर आप बाहर ले गए तो 24 घंटे के अंदर गिर्राज महाराज आपको बालक बना, शिला को लेकर आपको ब्रज में आना पड़ेगा। उनकी बिना अनुमति के आप शिला नहीं ले जा सकते है। ब्रज के समस्त मंदिरों में गिर्राज जी की शिला होती है।
श्रीशास्त्री ने भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को बड़े विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि रुक्मिणी साक्षात् लक्ष्मी हैं। लक्ष्मी सदैव नारायण का वरण करतीं हैं, जब राजा भीष्मक की बेटी रुक्मिणी ने भगवान श्रीकृष्ण को पत्र लिखा, तब भगवान श्रीकृष्ण स्वयंवर में पधारे और माता रुक्मिणी का हरण कर लिया। जब हम अपनी लक्ष्मी को भगवान को समर्पित नहीं करते तब भगवान अपनी लक्ष्मी का हरण करके वरण कर लेते हैं।
शास्त्री जी ने कहा भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह हुए भगवान के पूरे परिवार की संख्या है छप्पन करोड़ (56करोड़)। इतने बड़े परिवार के साथ भगवान सदैव प्रसन्न रहते हैंवक्योंकि ‘सदैव प्रसन्न रहना परमात्मा की सर्वोच्च भक्ति है’’। रुक्मिणी विवाह के साथ कथा का विश्राम हुआ आरती में हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। श्रद्धालु भागवत में आए अनेक प्रसंगों को सुनकर इतने अभिभूत हुए कि भावविभोर होकर नाचते रहे।
आरती में मुख्य अतिथि श्रीमहंत शनिदेव-धाम, श्रीमहंत सियाराम दास गोवर्धन, याज्ञीकरत्न आचार्य श्रीविष्णुकांत शास्त्री जी, भागवत प्रवक्ता आचार्य बुद्धिप्रकाश जी, वृंदावन अक्षयपात्र महाप्रभू अनन्तवीर जी, भागवताचार्य पंडित राजू भैयाजी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति किशन चौधरी, उनकी पत्नी श्रीमती संजू चौधरी, पुत्र पार्थ चौधरी व प्रथम चौधरी एवं दाऊजी मंदिर के रिसीवर आरके पांडेय शामिल रहे।
इस अवसर पर कुलाधिपति के पिता मोहन सिंह, उनकी मां ननगी देवी, भाई देवी सिंह, हितेश चौधरी, रवि चौधरी सहित परिवार के सभी सदस्य एवं विवि के वाइस चालंसर डॉ डीडी गुप्ता, प्रो वाइस चांसलर डॉ शरद अग्रवाल, रजिस्ट्रार पूरन सिंह, सीओई डॉ मनोज ओझा, मेडीकल प्राचार्य डा. पीएन भिसे, डीन डॉ धर्मराज सिंह, विवि के प्रोफेसर, शिक्षक शिक्षिकाएं तथा विवि और हॉस्पीटल का स्टाफ तथा हजारों की संख्या में महिला-पुरुष और बच्चे मौजूद रहे।
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